बुधवार, अप्रैल 13, 2011

क्‍या अन्‍ना की बात पर राजनीति जरुरी है?

अन्‍ना हजारे ने गुजरात और बिहार में हो रहे ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का उल्‍लेख अपने प्रेस कांफ्रेंस में किया था. अन्‍ना यह भूल गए कि वह कहां बोल रहे हैं और लोग उसका क्‍या मतलब निकालेंगे. मेधा पाटेकर और मल्लिका साराभाई जब इसका मतलब मोदी की तारीफ से लगा सकती है तो दूसरे अन्‍य लोगों की बात ही क्‍या. लगता है लोगों ने यह मान लिया है कि एक गलती (?) की सजा तमाम अच्‍छे कामों से ज्‍यादा होनी चाहिए. जब तक मोदी उस सीमा को तय नहीं कर लेते तब तक वो प्रशंसा के पात्र नहीं होंगे!

गुरुवार, अप्रैल 07, 2011

देश की आवाज बने अन्‍ना हजारे

देश की आवाज अन्‍ना हजारे की आवाज बन गई है. अन्ना हजारे जिस जन लोकपाल बिल के लिए भूख हड़ताल पर हैं, उसे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संतोष हेगड़े, वक़ील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मिलकर तैयार किया है.

क्‍या है जन लोकपाल बिल में:
1. इस बिल में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्य में लोकायुक्तों की नियुक्ति का प्रस्ताव है.
2. इनके कामकाज में सरकार और अफसरों का कोई दखल नहीं होगा.
3. भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल और लोकायुक्तों को साल भर में जांच पूरी करनी होगी.
4. अगले एक साल में आरोपियों के ख़िलाफ़ केस चलाकर क़ानूनी प्रक्रिया पूरी की जाएगी और दोषियों को सज़ा मिलेगी.
5. यही नहीं भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने वालों से नुकसान की भरपाई भी कराई जाएगी.
6. अगर कोई भी अफसर वक्त पर काम नहीं करता जैसे राशन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनाता तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा.
7. 11 सदस्यों की एक कमेटी लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति करेगी.
8. लोकपाल और लोकायुक्तों के खिलाफ आरोप लगने पर भी फौरन जांच होगी.
9. जन लोकपाल विधेयक में सीवीसी और सीबीआई के एंटी करप्शन डिपार्टमेंट को आपस में मिलाने का प्रस्ताव है.
10. साथ ही जन लोकपाल विधेयक में उन लोगों को सुरक्षा देने का प्रस्ताव है जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे.

मंगलवार, अगस्त 31, 2010

क्‍या कॉमनवेल्‍थ पाकिस्‍तान में हो रहा है?

कॉमनवेल्‍थ गेम भारत में नहीं हो रहा है. मुझे तो कम से कम यही लग रहा है. चाहे सत्ता पक्ष के मणिशंकर अय्यर हों या विपक्ष में बैठे वामदल हों, सब कॉमनवेल्‍थ को लेकर कुछ न कुछ ऐसा बयान दे रहे हैं. इन नेताओं के बयान से ऐसा लग रहा है जैसे यह खेल पाकिस्‍तान में कराए जा रहे हैं जिसे हर हाल में असफल हो जाना चाहिए.

हालिया बयान गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का आया है. मोदी का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी खुद से पोंछा लगाने लगे तो भी कॉमनवेल्‍थ गेम का कुछ नहीं हो सकता है. मोदी का कहना है कि कॉमनवेल्‍थ मामले में काम इतना बिगड़ चुका है कि कोई कुछ नहीं कर सकता है.

क्‍या देश की सभी पार्टियां कॉमनवेल्‍थ मुद्दे पर एक होकर इसे सफल बनाने के लिए काम नहीं कर सकती? क्‍या यह गेम पाकिस्‍तान में हो रहा है? बेहतर तो यह होता कि सभी नेता, पक्ष और विपक्ष मिलकर इस गेम को सफल बनाते और फिर इस दौरान हुई खामियों के लिए जिम्‍मेदारी तय करते. आखिर यह गेम अब देश की प्रतिष्‍ठा का विषय बन चुका है.

बुधवार, अगस्त 11, 2010

युवा पूछेंगे कत्‍ल होते सपनों के प्रदेश से...

सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्‍फों में पड़े
इतिहास-ग्रन्‍थों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाजिमी है
झेलनेवाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नजर होना लाजिमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते
-पाश

पाश की यह कविता उन लोगों के लिए पढ़ना बेहतर हो सकता है जो कश्‍मीर में बारूद की फसल बो रहे हैं और युवाओं को गुमराह कर रहे हैं. जिन आंखों में भविष्‍य के सपने होने चाहिए उन आंखों में खौफ का बसेरा बना हुआ है. राज्‍य के मुखिया अपने आप को नकारा साबित करने में लगे हुए हैं और विपक्षी दल पड़ोसी मुल्‍क की ओर उम्‍मीद की किरण तलाश रहे हैं. देश के मुखिया दो शब्‍द सद्भावना के बोल कर यह उम्‍मीद करने लगे हैं कि अब मामला सुलझ जाएगा.

सरकार की भूमिका पर सवाल उठाने वाले तो तमाम हैं लेकिन कोई उनसे क्‍यों नहीं पूछ रहा है जो गैर राजनीतिक बुद्धिजीवी हैं? ये लोग क्‍या कर रहे हैं? अगर इस उम्‍मीद में कश्‍मीर के बुद्धिजीवी अपने आप को राहत महसूस कर रहे होंगे कि हमारी तो कोई जवाबदेही नहीं है तो वे भूल जाएं इस बात को. आने वाले समय में प्रदेश का आम आदमी, युवा उन गैर राजनीतिक बुद्धिजीवियों की दिनचर्या, उनके पहनावे या उन नपुंसक मुठभेड़ के बारे में या फिर उनकी विद्वता के विषय में जानना नहीं चाहेगा और ना ही सफेद झूठ के साए में जन्‍मे उनके उलजूलूल जवाबों को सुनना पसंद करेगा.

कल घाटी का युवा उनसे भी सवाल पूछेगा. वह पूछेगा उनसे कि तब उन्‍होंने क्‍या किया जब मीठी आग की तरह उनका प्रदेश दम तोड़ रहा था? प्रदेश के युवा जिनका उन गैर राजनीतिक बुद्धिजीवियों की बातों में या विचारों में कोई स्‍थान नहीं है, वे पूछेंगे तब आपने क्‍या किया जब हमारे सपनों का कत्‍ल किया जा रहा था? सरकार की तरह प्रदेश के वे तमाम बुद्धिजीवी भी अपराधी हैं जो इस समय घाटी में युवओं के सपनों को जलते हुए देखकर भी खामोश बैठें हैं. मसला कुछ भी हो शांति और अमन से निपटाया जा सकता है और इसकी पहल हरेक स्‍तर पर हरहाल में होनी चाहिए.

गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

सबकी है मुंबई

मुंबई किसकी यह सवाल पूछना बेमानी है। इसका यह मतलब निकाला जा सकता है कि इस पर शक है. लेकिन हमें इसपर कोई शक नहीं होना चाहिए कि मुंबई सबकी है, देश की है, देशवासियों की है. ठाकरे परिवार या किसी राजनीतिक पार्टी की जागीर नहीं है.

मंगलवार, सितंबर 22, 2009

आडवाणी जी यह क्‍या कह रहे हैं आप

सहमति और असहमति से आडवाणी जी का पुराना संबंध है। कंधार मामले की उन्‍हें जानकारी नहीं थी। हालांकि आडवाणी जी हरदम इस मसले पर अपना पाला बदलते रहे। भला एक गृहमंत्री को अपने देश में घटने वाली घटनाओं की जानकारी न हो यह सुनना बड़ा अटपटा लगता है। जसवंत मामले पर आडवाणी का बयान भी कुछ कंधार जैसा ही है। इन्‍हें कभी फैसले की जानकरी रहती है तो कभी नहीं। कभी जसवंत के निष्‍कासन को ठीक मानते हैं तो कभी नहीं। हमें लगता है अब आडवाणी जी अपने ज्ञान को कनिष्‍ठ सहयोगियों के बीच बांटें तो पार्टी का काफी भला होगा और आने वाले समय में देश का भी।

शशि थरूर जी यह लोकतंत्र है

शशि थरूर जी आप कभी एक बड़े अधिकारी थे लेकिन अभी एक जिम्‍मेदार मंत्री हैं. यह प्रशासनिक सेवा का पद नहीं है बल्कि जनसेवा का पद है. ऐसे में आपके कहे सभी बातों का मतलब निकाला जाएगा. यहां के लिए आपको शब्‍दों का चयन सही तरीके से करना होगा नहीं तो यह पब्लिक है...

दलित बस्‍ती में ही सफाई करने क्‍यों पहुंच जाते हैं नेता...

बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्‍यवस्‍था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...