रविवार, दिसंबर 30, 2007
शनिवार, नवंबर 24, 2007
पाक में चैनल के कार्यक्रम सड़क पर
पता नहीं जनरल साहब किस प्रकार का लोकतंत्र पाकिस्तान में चाहते हैं... लगता है उनकी शासन करने की मानसिकता सैन्य संचालन की तरह ही जिंदा है। लेकिन जनरल साहब को समझना होगा की यह सेना संचालन जैसा नहीं है। यहां अलग-अलग ख्याल के लोग है, जाहिर है अनुशासन का तरीका भी अलग होगा। समझिए जनरल साहब नहीं तो पाकिस्तान की जनता शायद समझा दे।
अब खबर
पाकिस्तान की मीडिया ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा आपातकाल के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ संघर्ष करने का नया तरीका ढूंढ निकाला है।
आपातकाल के दौरान निजी समाचार चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा दी गई है, ऐसे में पत्रकारों ने अपनी आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए नए उपाय निकाले हैं।
पत्रकारों जिन कार्यक्रमों का प्रसारण पहले स्टूडियों में बैठ कर करते थे, अब उन्होंने ऐसे कार्यक्रम सड़क, चौपालों में करने शुरू कर दिए हैं।
डॉन न्यूज के सम्पादक जफर अब्बास कहते है कि प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अब वे अपनी आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए सड़कों पर आ गए हैं। पाकिस्तान प्रेस क्लब के बाहर ऐसे ही कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है जिनमें दर्शक सीधे तौर पर पहुंच रहे हैं।
ऐसा ही एक शो जियो टीवी के प्रस्तोता हामिद मीर द्वारा किया गया जिसमें पूर्व क्रिकेटर और राजनीतिक इमरान खान ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में जनता ने बड़े उत्साह से भाग लिया और खान से सवाल पूछे।
जियो, एआरवाई दुबई से अपलिंकिंग सुविधा हटाएंगे
पाकिस्तानी सैन्य शासन के दबाव में प्रसारण पर प्रतिबंध झेल रहे एआरवाई तथा जिओ टीवी चैनल सैटेलाइट सिग्नल अपलिंकिंग सुविधा दुबई की मीडिया सिटी से हटा कर लंदन या सिंगापुर स्थानांतरित करने पर विचार कर रहे हैं।
एआरवाई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सलमान इकबाल ने बताया कि पिछले 22 दिनों में उन्हें 80 लाख डालर का नुकसान उठाना पड़ा है। उन्हें डर है कि ऐसा दोबारा हो सकता है।
दुबई मीडिया सिटी ने दो लोकप्रिय पाकिस्तानी चैनलों का प्रसारण पाकिस्तान सरकार के कहने पर बंद कर दिया था। मीडिया सिटी के अधिकारियों ने कहा कि यह निर्णय संयुक्त अरब अमीरात की तटस्थता और हस्तक्षेप नहीं करने की नीति के अंतर्गत लिया गया।
जिओ न्यूज के अधिकारियों ने बताया कि वे भी प्रसारण अपलिंकिंग सुविधा दुबई के बाहर ले जाने पर विचार कर रहे हैं।
शुक्रवार, नवंबर 02, 2007
बंद से नहीं ठोस निर्णय से बदलेगा बिहार
गुंडा, मवाली और बलात्कारी आपके जनप्रतिनिधि हैं तो आप एक बार सोचिए। हो सकता है आपका यह जनप्रतिनिधि आपका ही शिकार कर बैठे। अपराध के विरोध में बंद करने भर से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। जरूरत है एक बदलाव की और यह बदलाव जनता ही ला सकती है। अपना जनप्रतिनिधि चुनने से पहले यह जरूर देखा जाना चाहिए कि उम्मीदवार का बैकग्राउंड कैसा है।
अब खबर
विपक्षी दलों ने पत्रकारों पर हुए जानलेवा हमले के खिलाफ शुक्रवार को बिहार बन्द का आह्वान किया है। बंद से रेलवे, विमान सेवा, एम्बुलेंस, अस्पताल, दवा दुकान सहित आपात सेवाओं को अलग रखा गया है। बन्द को राजद, कांग्रेस, लोजपा, माकपा, भाकपा, एनसीपी, बसपा व समता पार्टी का समर्थन है।
नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी के नेतृत्व में गुरुवार को विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्यपाल आरएस गवई से मिलकर घायल पत्रकारों की सुरक्षा, उनका सरकारी खर्चे पर इलाज व रेशमा खातून की हत्या से सम्बन्धित साक्ष्य मिटाने से सरकार को रोकने का आदेश देने का अनुरोध किया। नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी ने अभिभावकों से अनुरोध किया है कि वे बन्द के दिन अपने बच्चों को स्कूल, कालेज नहीं भेजें। उन्होंने कहा कि एनडीटीवी के पत्रकार प्रकाश सिंह, फोटोग्राफर हबीब व एएनआई के अजय कुमार की जदयू विधायक अनन्त सिंह ने अपने सरकारी आवास पर जान से मारने की नीयत से बेरहमी से पिटाई की। उन्होंने कहा कि रेशमा खातून नामक महिला की हत्या के सम्बन्ध में पत्रकार उनका पक्ष लेने पहुंचे थे। इससे पूर्व बिहार बन्द को लेकर नेता प्रतिपक्ष के कक्ष में विरोधी दलों के नेताओं की बैठक हुई। इसमें लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हमले को खतरनाक संकेत माना गया।
राज्यपाल से मिलने के बाद नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि शिष्टमंडल ने राज्यपाल से रेशमा खातून मामले में विधायक अनन्त सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर स्पीडी ट्रायल चलाने, पुलिस अधिकारियों को बुलाकर साक्ष्य समाप्त होने से बचाने व इसकी जांच कराने का अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा कि रेशमा के पत्र पर डीपीजी के स्तर से कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गयी। रेशमा ने मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में विधायक अनन्त सिंह पर बलात्कार का आरोप लगाया था। उसने अपनी हत्या की भी आशंका जतायी थी। इस पत्र की प्रति नेता प्रतिपक्ष को भी भेजी गयी थी। पत्र की प्रति नेता प्रतिपक्ष ने 27 अक्टूबर को डीजीपी को भेजी भी, लेकिन इसके बावजूद कोई कर्रवाई नहीं हुई।
प्रदेश राजद अध्यक्ष अब्दुलबारी सिद्दीकी व मुख्य प्रवक्ता शकील अहमद खां ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दरबार का नाटक करते हैं जबकि रेशमा के पत्र पर कार्रवाई करने की उनको फुर्सत तक नहीं थी। उन्होंने कहा कि मामले की सीबीआई जांच तभी सार्थक हो सकती है जब साक्ष्य बरकरार रहें। राज्यपाल से मिलने वाले शिष्टमंडल में कांग्रेस विधायक दल के नेता डा. अशोक कुमार, लोजपा के दुलारचन्द यादव, माकपा के सुबोध राय, भाकपा के यूएन मिश्र, बसपा के रामचन्द्र यादव, समता के पीके सिन्हा, प्रदेश राजद अध्यक्ष अब्दुलबारी सिद्दीकी, शकील अहमद खां, रामचन्द्र पूर्वे व रामबचन राय शामिल थे।
गुरुवार, नवंबर 01, 2007
यह कैसा सुशासन है नीतीश जी
यह कैसा सुशासन है जहां पत्रकारों को बंधक बनाकर रखा जाता है और उसकी पिटाई की जाती है। माननीय मुख्यमंत्री जी आपने तो बिहार की जनता के सामने सुशासन लाने का वादा किया था। क्या यही आपका सुशासन है। शर्म कीजिए, अगर ईमानदारी से शासन करने के लिए ऐसे अपराधी लोगों का सहयोग लेना पर रहा है तो इससे अच्छा है आप अपने पद से इस्तीफा दे दें और जनता के दरबार में जाएं। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो पिछली सरकार जिसके विषय में आप पानी पी पीकर कोसते रहे, तो उसमें और आपमें कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
अब खबर:
बिहार की राजधानी पटना में सत्तारूढ़ जनतादल (यूनाइडेट) के एक विधायक अनंत सिंह के घर पर कुछ पत्रकारों की पिटाई की गई है। पहले उनके घर पर ख़बर लेने गए एक टीवी चैनल एनडीटीवी के पत्रकार और उनके कैमरामैन के साथ गालीगलौज की गई और उन्हें बुरी तरह पीटा गया और फिर उनके घर के सामने जमा हुए पत्रकारों को भी दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया.
इस मारपीट में घायल तीन पत्रकारों को अस्पताल में भर्ती किया गया है. एनडीटीवी के कैमरामैन की हालत गंभीर बताई गई है.
मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क़रीबी लोगों में से एक माने जाते हैं । वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कुंदन कृष्णन ने बताया कि विधायक अनंत सिंह और उनके चार समर्थकों को न्यायिक हिरासत में लिया गया है। उधर विपक्ष की नेता राबड़ी देवी ने इस घटना की निंदा करते हुए शुक्रवार को बिहार बंद का ऐलान किया है. मामला एक लड़की के दैहिक शोषण और उसकी कथित हत्या से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है.
मामला
पिछले दिनों एक युवती रेशमा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष की नेता राबड़ी देवी सहित कई राजनीतिज्ञों को पत्र लिखकर विधायक अनंत सिंह और दो ठेकेदारों पर नौकरी देने के नाम पर दैहिक शोषण का आरोप लगाया था. रेशमा ने अपने पत्र में ठेकेदारों के नाम विपिन सिन्हा और मुकेश सिंह लिखे हैं. पटना के शास्त्री नगर इलाक़े में बुधवार की शाम एक बोर में एक युवती की लाश मिली. इसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे कि यह लाश उसी युवती रेशमा की है। हालांकि पुलिस ने इसकी पुष्टि नहीं की है कि यह लाश रेशमा की ही थी. गुरुवार को एनडीटीवी के पत्रकार प्रकाश सिंह अपने कैमरामैन हबीब अली के साथ अनंत सिंह के घर उनका पक्ष जानने के लिए गए हुए थे.
प्रकाश सिंह का कहना है कि उन्होंने जैसे ही इस लड़की के सिलसिले में सवाल पूछे अनंत सिंह नाराज़ हो गए और गालीगलौज करने लगे और फिर मारपीट पर उतर आए. उनका आरोप है कि विधायक के घर पर उन्हें बंधक भी बना लिया गया था. इस घटना की ख़बर मिलने के बाद जब पटना के दूसरे पत्रकार अनंत सिंह के घर के सामने इकट्ठा हुए पत्रकारों को भी अनंत सिंह के समर्थकों और उनके बंगले पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। पत्रकार प्रकाश सिंह, कैमरामैन हबीब अली की ओर से पुलिस में अनंत सिंह और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ मारपीट करने, गालीगलौज करने और जान से मारने की धमकी देने की रिपोर्ट लिखाई है. इसके आधार पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कुंदन कृष्णन ने अनंत सिंह के घर जाकर कार्रवाई की है. उन्होंने बताया कि अनंत सिंह और उनके चार समर्थकों को पहचान के आधार पर न्यायिक हिरासत में लिया गया है.
नीतीश कुमार की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
शुक्रवार, अक्टूबर 26, 2007
गुजरातः दंगों की ख़बर में फिर लगी आग
गुजरात में दंगा को लेकर काफी विचार मंथन हो चुका है। अभी जो रिपोर्ट आई है वह कोई नई बात नहीं है। सभी जानते हैं कि भाजपा की सरकार दंगाईयों को खुली छूट दिए हुए थी। कत्लेआम होते रहा और सरकार चुपचाप बैठी रही। मीडिया की खबरों से सरकार की निंद खुली और राज्य में सेना की मदद ली गई। शायद यही राजधर्म था जिसका आह्वान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।
अब खबर
भारतीय मीडिया जगत के दो समूहों ने गुरुवार की शाम अपनी एक विशेष रिपोर्ट में खुलासा करते हुए दिखाया था कि गुजरात दंगों में जिन लोगों की कथित रूप से भूमिका थी उनका दंगों के बारे में क्या कहना है.
इस सनसनीखेज खुलासे में कुछ सरकार में शामिल नेता, हिंदुवादी संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों और यहाँ तक कि पुलिस महकमे के एक आला अधिकारी के बारे में कथित तौर पर बताया गया है कि किस तरह दंगों में अल्पसंख्यकों को मारा गया और प्रशासन की मदद से दंगों की योजना को अमलीजामा पहनाया गया.
संभव है कि इस खुलासे से सामाजिक और सांप्रदायिक स्तर पर ध्रुवीकरण बढ़ेगा और इसका लाभ कट्टरवादी ताकतों को होगा. ज़ाहिर है कि हिंदू हितों की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी और राज्य के नेतृत्वकर्ता नरेंद्र मोदी को इसका लाभ मिलेगा
एक भाजपा विधायक ने कथित रूप से बताया कि दंगों के दौरान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तीन दिन के वक्त में जो करना हो कर लो. इसके बाद तेज़ी से अल्पसंख्यकों को मारने का काम किया गया था.
ग़ौरतलब है कि 27 फरवरी, 2007 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के दो डिब्बों में आग लगने की घटना के बाद गुजरात भर में दंगे भड़क गए थे। साबरमती एक्सप्रेस के जिन दो डिब्बों में आग लगी थी उनमें अयोध्या से लौट रहे हिंदू संप्रदाय के लोग सवार थे। इस घटना में पाँच दर्जन से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद ही गोधरा सहित गुजरात के कई हिस्सों में दंगे भड़क गए थे और मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर क़त्लेआम शुरू हो गया था। दंगों में महिलाओं, बच्चों सहित सैकड़ों अल्पसंख्यक मारे गए थे।
इस ख़ुलासे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पहली बार राज्य सरकार और कट्टर हिंदुवादी संगठनों के नेताओं को दंगों की कहानी बयाँ करते हुए दिखाया गया है। माना जा रहा है कि इससे नरेंद्र मोदी को नुकसान कम और फ़ायदा ज़्यादा होगा पर राज्य में हाल ही में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में गुजरात दंगों पर इस विशेष रिपोर्ट के सामने आने के बाद कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
मसलन, क्या यह गुजरात दंगों के बारे में की गई खोजबीन को सार्वजनिक करने का सही वक्त था और क्या इससे नरेंद्र मोदी औऱ उनकी पार्टी को कोई नुकसान पहुँच पाएगा। गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखें तो लगता है कि इस ताज़े ऑपरेशन का नरेंद्र मोदी और भाजपा को नुकसान कम और फ़ायदा ज़्यादा मिलेगा। संभव है कि इस खुलासे से सामाजिक और सांप्रदायिक स्तर पर ध्रुवीकरण बढ़ेगा और इसका लाभ कट्टरवादी ताकतों को होगा। ज़ाहिर है कि हिंदू हितों की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी और राज्य के नेतृत्वकर्ता नरेंद्र मोदी को इसका लाभ मिलेगा।हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इसके बाद नरेंद्र मोदी के लिए निजी स्तर पर मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं और पार्टी के भीतर और बाहर मोदी के विरोधी उनकी प्रभावी स्थिति पर नैतिकता के आधार पर सवाल उठा सकते हैं। साथ ही दंगों की जाँच प्रक्रिया में अगर इन बयानों को गंभीरता से लेते हुए कोई क़दम उठाया जाता है तो नरेंद्र मोदी के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं रह जाएगा।
सोमवार, अक्टूबर 22, 2007
रोजगार गारंटी मामले में रिपोर्ट से पहले ही खलबली
अपनी बात
देश में जो बेरोजगार है वह मजदूर है। कम से कम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की वास्तविकता तो यही है। काम अभी भी ठेकेदार के मनमुताबिक ही होता है। रोजगार के नाम पर खानापूर्ति से अधिक कुछ नहीं किया जा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह कि सरकार इसे कामयाबी मान रही है। वैसे रोजगार प्रदान करने का जो मॉडल पेश किया गया है वह बेहतर है लेकिन कार्यन्वयन का जो तरीका है वह ठीक नहीं है। इस मामले में सरकार को कड़ाई से पेश आना चाहिए।
खबर अब तक
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का समय से बहुत पहले पूरे देश में विस्तार कर सरकार अपनी पीठ भले ही थपथपा रही हो, लेकिन इसके कार्यान्वयन पर अगले सप्ताह संभावित सीएजी की रिपोर्ट को लेकर आशंका भी घिर आई है। माना जा रहा है कि सफल बताई जा रही इस योजना पर सीएजी की रिपोर्ट के बाद कई सवाल उठ सकते हैं।
हाल में उपजी चुनावी संभावनाओं के बीच सरकार ने पांच साल का काम डेढ़ साल में पूरा कर लिया था। सरकार की ओर से एकबारगी पूरे देश में रोजगार गारंटी योजना का विस्तार कर दिया गया था, जबकि महज पांच-छह महीने पहले ही वित्त मंत्रालय तथा योजना आयोग ने कार्यान्वयन में खामियों के कारण विस्तार के प्रस्ताव पर आपत्तिजताई थी। अब केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सामने फिर से वही सवाल उठने वाला है। दरअसल, कई स्तरों से आ रही शिकायतों के बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डा. रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपनी पहल पर इसकी जांच का जिम्मा सीएजी को सौंप दिया था। आधिकारिक तौर पर जानकारी के लिए 62 जिलों के 200 ब्लाकों की जांच का निर्देश दिया गया था।
बताया जाता है कि 31 अक्टूबर को सीएजी अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है। आशंका है कि इसके कार्यान्वयन को लेकर वही संदेह पुष्ट हो सकते हैं जो अब तक जताए जाते रहे हैं।
गौरतलब है कि योजना के कार्यान्वयन में सफल बताए जा रहे राज्य राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से शिकायतें आई हैं। कुछ जगहों पर ठेके पर योजना चलाने तो कई स्थानों से वाजिब मजदूरी का भुगतान न होने की शिकायत मिली है। खुद एनआरईजीए काउंसिल के सदस्यों की ओर से भी कई खामियों पर मंत्रालय का ध्यान दिलाया गया है। ऐसे में रघुवंश की ओर से जांच की पहल योजना के लिए तो अच्छी है, लेकिन मंत्रालय के अधिकारियों के लिए थोड़ी असुविधाजनक है। बताते हैं कि मंत्रालय के अंदर पहले भी इसका परोक्ष रूप से विरोध हो चुका है। अब जब रिपोर्ट आने वाली है तो जाहिर तौर पर आशंकाएं भी तेज हो गई हैं।
शुक्रवार, अक्टूबर 19, 2007
सेंसेक्स में जारी है सांप सीढ़ी का खेल
दो शब्द
शेयर बाजार जुआ घर से कम नहीं है। यहां कुछ लोग मालामाल हो रहे हैं तो कुछ लोग कंगाल। आम आदमी इनमें कही नहीं है। उसे तो अपने रोजी रोटी से फूर्सत ही कहां है। शेयर बाजार में उछाल अखबार की एक बड़ी खबर बन जाती है लेकिन लोकसरोकार से जुड़े मुद्दे कभी-कभार ही अखबारों में हेडलाइन बन पाती है। कारण साफ है- अब आमलोगों से खास लोगों को कोई मतलब नहीं है। मतलब है तो सिर्फ अपने पॉकेट से। कितना खाली होता है और कितना भरता है यह पॉकिट इस पर निर्भर करता है लोकसरोकार का मुद्दा।
अब खबर
देश के शेयर बाजार बुधवार को कारोबार शुरू होते ही इतने नीचे लुढ़क गए कि कारोबार को एक घंटे के लिए रोक देना पड़ा। बाद में केन्द्रीय वित्तमंत्री और सेबी द्वारा निवेशकों को भरोसा दिलाने से इनमें कुछ जान आई, लेकिन सत्र की समाप्ति पर बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) 336 अंक और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी सूचकांक 109 अंक की भारी गिरावट के साथ बंद हुआ।शेयर बाजारों में विदेशी निवेशकों की ओर से आ रहे धन के प्रवाह पर अंकुश लगाने के सेबी के कल के प्रस्ताव से इतनी अफरा-तफरी फैल गई कि कारोबार शुरू होने के एक ही मिनट के भीतर सेंसेक्स डेढ़ हजार तथा निफ्टी पाँच सौ अंकों से अधिक नीचे फिसलकर निचले सर्किट पर आ गया। सेंसेक्स के करीब आठ प्रतिशत और निफ्टी के नौ प्रतिशत से ज्यादा नीचे जाने से नियमानुसार कारोबार को एक घंटे के लिए रोक देना पड़ा।इसके तुरंत बाद वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार का पीएन (पार्टिसिपेटरी नोट) के जरिये शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के निवेश पर रोक लगाने का कोई इरादा नहीं है, पर सरकार पीएन के जरिये निवेश की सीमा तय कर इसे नियंत्रित करना चाहती है। वित्तमंत्री ने कहा कि आम निवेशकों, एफआईआई और शेयर दलालों को इससे घबराने की जरूरत नहीं है।सेबी प्रमुख एम. दामोदरन ने भी कहा कि निवेशकों को अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। दामोदरन ने कहा कि पीएन के माध्यम से निवेश पर अंकुश लगाने का प्रस्ताव सोच-समझकर उठाया गया कदम है। इस पर सभी सम्बद्ध पक्षों से राय ली जाएगी। वित्तमंत्री और सेबी प्रमुख के बयानों के बाद बाजार में कुछ सुधार देखा गया।
बीयेसई के तीस शेयर आधारित सेंसेक्स 19000 अंक तक की अपनी यात्रा में किन-किन पड़ावों को कब-कब पार किया, प्रस्तुत है विस्तृत ब्योरा:-
1000 : 25 जुलाई, 1990
2000 : 03 जनवरी, 1992
3000 : 29 फरवरी, 1992
4000 : 30 मार्च, 1992
5000 : 08 अक्तूबर, 1999
6000 : 11 फरवरी, 2000
7000 : 20 जून, 2005
8000 : 08 सितंबर, 2005
9000 : 28 नवंबर, 2005
10000 : 06, फरवरी 2006
11000 : 21 मार्च, 2006
12000 : 20 अप्रैल 2006
13000 : 30 अक्टूबर, 2006
14000 : 05 दिसंबर, 2006
15000 : 06 जुलाई, 2007
16000 : 19 सितंबर, 2007
17000 : 26 सितंबर, 2007
18000 : 09 अक्टूबर, 2007
19000 : 15 अक्टूबर, 2007
दलित बस्ती में ही सफाई करने क्यों पहुंच जाते हैं नेता...
बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्यवस्था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...
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बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्यवस्था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...
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हमारे पास अग्नि और पृथ्वी मिसाइल है... संचार के सारे उपकरण है... हमारा देश आने वाले समय में चांद पर कदम रखने की तैयारी कर रहा है... लेकिन ...
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गोरख पाण्डेय की डायरी पढ़ने को मिला. उनकी कविता, 'समझदारों का गीत' काफी अलग है... हवा का रुख कैसा है,हम समझते हैं हम उसे पीठ क्...