क्रिकेट का बुखार अभी उतरा नहीं है लेकिन टीम इंडिया टुकड़ों में लौट रही है. गुरू ग्रेग का अभियान उनके शिष्यों के आत्मसमर्पण करने के साथ ही समाप्त हो गया। लोगों ने जिन क्रिकेटरों को भगवान की तरह पूजा वही क्रिकेटर अपने भक्तों को निराश कर खाली हाथ लौट रहे हैं। देश में कही मुंडन हो रहा है तो कही आत्महत्या की कोशिश। आखिर यह जुनून क्यों ?
क्रिकेटरों ने विज्ञापन जगत में जितना पैसा कमाया है उतना बॉलीवुड के अभिनेताओं के हाथ भी नहीं लगे हैं। यह सही है कि क्रिकेटरों को पेशेवर होना चाहिए लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अपने खेल का मौलिक प्रदर्शन भी भूल जाए। विश्व के सम्मानित बल्लेबाज होने का यह मतलब तो नहीं कि वह बरमुडा जैसे नवसिखुए देश के रहमोकरम पर आगे बढ़ने की स्थिति में आ जाए। लकिन यही कुछ दिखा टीम इंडिया के साथ। आखिर ऐसा नाम किस काम का ?
इन सब विवादों और प्रश्नों के बीच यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि क्रिकेट अनिश्चितताओं से भरा खेल है। कुछ नहीं कहा जा सकता कि आगे क्या होगा ? क्या ऐसे में अपने पर नियंत्रण खोकर क्रिकेट का भला कर पाएंगे ? आपका क्या विचार है ? खेल को खेल ही रहने दिया जाए या फिर उसे देश की प्रतिष्ठा और मजहब के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया जाए?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
दलित बस्ती में ही सफाई करने क्यों पहुंच जाते हैं नेता...
बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्यवस्था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...
-
बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्यवस्था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...
-
हमारे पास अग्नि और पृथ्वी मिसाइल है... संचार के सारे उपकरण है... हमारा देश आने वाले समय में चांद पर कदम रखने की तैयारी कर रहा है... लेकिन ...
-
गोरख पाण्डेय की डायरी पढ़ने को मिला. उनकी कविता, 'समझदारों का गीत' काफी अलग है... हवा का रुख कैसा है,हम समझते हैं हम उसे पीठ क्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें